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दीपक भारतदीप की इससे पहले हमने जो हास्य कविता दी थी वह आप लोगों को बहुत पसंद आई. आजकल हर तरफ क्रिकेट का बुखार छाया हुआ है सो हम लेकर आए हैं एक हास्य कविता क्रिकेट को लेकर.
खेल क्रिकेट का
पांच दिन से एक दिन
अब क्रिकेट खेल के रह गये बीस ओवर
बाजार में देश प्रेम की भावनाओं का
भुनाते ख़ूब चला व्यापार
लोगों के दिल में हो गया ओवर
बरसों तक टीवी को देख आखें सडाईं
रेडियो में कान लगाकर सुखाये
हार पर मन ही मन आंसू बहाए
अब तो मर गया शौक़
यह लगे जब इल्जाम असली खिलाड़ी तो हैं
क्रिकेट से कमाने वाले ब्रोकर
हम तो बन गये ख्वाख्वाह में जोकर
सच या झूठ क्या है कोई नहीं जानता
पर व्यापार तो चलते हैं साख पर
लोगों की भावनाओं को भुनाकर
उसमें हो गये क्रिकेट के पूरे ओवर
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सिक्सर कौन लगाता है
फ़ॉर कौन बचाता है
सेंचुरी किसकी पूरी होगी
कौन निन्यानवे के फेर में फसेगा
मैदान पर तय होगा या बाहर
कौन कह सकता है
क्रिकेट को कहा जाता है
अनिश्चतताओं का खेल
परदे पर क्या है
मैदान पर क्या
यह तो दिख जाता है
पर उसके पीछे क्या होगा
कौन कह सकता है
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