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काका हाथरसी का हास्य कविता – अनुशासनहीनता और भ्रष्टाचार

Hasya Kavita
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हास्य कविताओं के इस संग्रह में एक बार फिर हम लेकर आएं है एक बेहतरीन हास्य कविता. काका हाथरसी के हास्य संग्रह से एक छोटी सी कविता आप लोगों को गुदगुदाने के लिए हाजिर है. यह कविता भ्रष्टाचार और अनुशासनहीनता पर आधारित है.


साथ ही काका हाथरसी बढ़े प्यार से सबको दाढ़ी की महिमा भी बता रहे हैं.


बिना टिकट के ट्रेन में चले पुत्र बलवीर
जहाँ ‘मूड’ आया वहीं, खींच लई ज़ंजीर
खींच लई ज़ंजीर, बने गुंडों के नक्कू
पकड़ें टी. टी. गार्ड, उन्हें दिखलाते चक्कू
गुंडागर्दी, भ्रष्टाचार बढ़ा दिन-दूना
प्रजातंत्र की स्वतंत्रता का देख नमूना


दाढ़ी- महिमा


‘काका’ दाढ़ी राखिए, बिन दाढ़ी मुख सून

ज्यों मंसूरी के बिना, व्यर्थ देहरादून

व्यर्थ देहरादून, इसी से नर की शोभा

दाढ़ी से ही प्रगति कर गए संत बिनोवा

मुनि वसिष्ठ यदि दाढ़ी मुंह पर नहीं रखाते

तो भगवान राम के क्या वे गुरू बन जाते


शेक्सपियर, बर्नार्ड शॉ, टाल्सटॉय, टैगोर

लेनिन, लिंकन बन गए जनता के सिरमौर

जनता के सिरमौर, यही निष्कर्ष निकाला

दाढ़ी थी, इसलिए महाकवि हुए ‘निराला’

कहं ‘काका’, नारी सुंदर लगती साड़ी से

उसी भांति नर की शोभा होती दाढ़ी से।


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