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हिन्दी हास्य रचनाओं के इस ब्लॉग में आपके लिए हाजिर है हास्य कवि मानस खत्री की एक प्रसिद्ध रचना. टेलीविजन, आप और हम सब इसके बिना एक दिन भी नहीं रह सकते. टेलीविजन की इसी बात को मानस खत्री ने अपनी रचना से सबको बताया है.
टेलीविज़न
टी.वी. का अपना ही एक मज़ा है,
एक दिन टी.वी. से क्या दूर रह गए,
मनो मिल गई सजा है.
ये टी.वी. वाले भी क्या गज़ब ढाते हैं,
एक तरफ सभ्यता का पाठ पढ़ाते हैं,
तो दूसरी तरफ सास-बहु को खुद ही लड़वाते हैं.
‘एकता कपूर’ जी के सेरि़लों ने खोले हैं महिलाओं के नयन,
अब हर सास ‘तुलसी’ और ‘पार्वती’ जैसी बहुओं का ही करती है चयन.
टी.वी. पर अधिकतम कार्यक्रम महिलाओं के ही आते हैं,
एक अकेले ‘संजीव कपूर’ हैं,
पर लानत है वो भी, खाना बनाना सिखाते हैं.
टी.वी पर भी चढ़ा है, आधुनिकता का रंग,
नामुमकिन है टी.वी. देखना, घर-परिवार के संग.
सबके अपने-अपने हैं Views,
कोई देखता है कार्यक्रम, तो कोई News.
रात भर ये News चैनल वाले भी,
छोड़ते हैं आजब-गज़ब भौकाल,
कोई ‘हत्यारा कौन’, तो कोई ‘काल-कपाल-महाकाल’.
लेकिन कम से कम एक आराम है,
‘सिंदूर’ और ‘कमोलिका’ के होते हुए,
‘माचिस’ और Lighter का क्या काम है.
आज कल की फिल्मों की कहानी तो एकदम भूसा है,
गाना तो इसमें ज़बरदस्ती ही गया ठूसा है,
और जो कमी बाकी थी, वो अभिनेत्रियों ने कर दी पूरी है,
खली समय कैसे बिताएँ दोस्तों,
फिल्म देखना तो हमारी मजबूरी है.
‘WWE’ और ‘Smackdown’ ही कर रह है,
बच्चों का भविष्य मंगल,
दोस्त बन गए हैं Boxing-Pad,
और कक्षाएं हो रही हैं दंगल.
बच्चों का कार्टून से गहरा नाता है,
२१ वीं सदी में तो ‘राम’ और ‘हनुमान’ जी का भी कार्टून आता है.
ये Telebrands वाले भी क्या गज़ब ढाते हैं,
मूह कुछ बोलता है, और होंठ कुछ और बतलाते हैं.
फैजाबाद की अजब-गज़ब सिटी-बुलेटिन पर ज़रा कीजिये गौर,
दिखता है कोई, और न्यूज़ पढता है कोई और.
बड़े-बूढों को तो ‘आस्था’ और ‘संस्कार’ चैनल ही भाता है,
पर Pop-Music के आगे राम-नाम किसे समझ आता है.
टी.वी में सच है, झूठ है, कल्पना है, प्रेम है,
आदि-आनादि गुण विराजमान हैं,
पर कार्यक्रम वाही अच्छा है,
जिसमे नसीहत है, ज्ञान है.
टी.वी तो सिर्फ खाली समय को बिताने का एक उपाय है,
फ़िलहाल मेरी तो यही राय है,
टी.वी देखने के साथ बच्चों पढाई में भी दीजिए ध्यान,
और कार्यक्रम वही देखिये जिसमे प्राप्त हो ज्ञान.
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