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शादी का लड्डू – जनहित में जारी

Hasya Kavita
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पिछले महीने हमारे एक प्रिय मित्र की शादी थी. मियां शादी के बाद खुश तो बहुत थे लेकिन पता नहीं एक महीने में क्या हुआ उनके साथ जो एक दर्द भरी हास्य कविता लेकर आज सुबह चाय की महफिल में आ गए.


इस दर्द भरी हास्य कविता को तो पढ़कर हमें अपनी शादी की योजनाओं पर यमुना का पानी डालने का मन कर रहा है. आप भी पढ़िए इस कविता को और अगर आप शादी-शुदा हैं तो इसमें अपने आप को देखकर सोचिए और अगर हमारी तरफ कुंवारे हैं तो अपने भविष्य को देखकर चिंतित हो जाइए.


2371218554_fc57df403dशादी का लड्डू


अभी शादी का पहला ही साल था,
ख़ुशी के मारे मेरा बुरा हाल था,
खुशियाँ कुछ यूं उमड़ रही थीं,
की संभाले नहीं संभल रही थीं..


थोडा शरमाते हुये हमें नींद से जगाना,
वो प्यार भरा हाथ हमारे बालों में फिरना,
मुस्कुराते हुये कहना की…


जल्दी से रेडी हो जाओ,
आपको ऑफिस भी है जाना…


दिल और दिमाग पर पूरी तरह छाई थी,
सांस भी लेते थे तो नाम उसी का होता था,
इक पल भी दूर जीना दुश्वार होता था…


5 साल बाद……..


सुबह सुबह मैडम का चाय ले कर आना,
टेबल पर रख कर जोर से चिल्लाना,
आज ऑफिस जाओ तो मुन्ना को
स्कूल छोड़ते हुए जाना…


क्या बात है अभी तक छोड़ी नही चारपाई,
अगर मुन्ना लेट हो गया तो देख लेना,
मुन्ना की टीचर्स को फिर खुद ही संभाल लेना…


दिल और दिमाग पर काली घटा छाई थी,
सांस भी लेते हैं तो उन्ही का ख़याल होता है,
अब हर समय जेहन में एक ही सवाल होता है…


हम एक बार फिर कुंवारे हो जाएंगे..



[जनहित में जारी]


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