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पिछले दिनों सरकार ने अठन्नी और चवन्नी के प्रचलन को पूरी तरह से बंद कर दिया. यह अठन्नी और चवन्नी एक आम आदमी के जीवन में बहुत महत्व रखती हैं. अब मेरे लिए ही देख लीजिए. बचपन में मम्मी स्कूल जाने के लिए 50 पैसे का सिक्का थमा देती थी. तब 50 पैसे में अच्छी वाली टॉफी आ जाती थी. आज भी मेरे पास कई अठन्नियां हैं जो मेरी यादों का एक हिस्सा रहे है. सरकार ने इनका चलन बंद कर दिया तो लग रहा है कि क्या कभी सरकार एक और दो के सिक्के भी बंद कर सकती है?
खैर सरकार की अठन्नी बंद करने के निर्णय पर हमें भी एक हास्य कविता मिली जो बेहद बेहतरीन है. तो चलिए मजा लेते हैं एक हास्य कविता का.
ताक धिना धिन धिन्ना: हास्य कविता
(चवन्नी गई, अठन्नी भी जाएगी, रुपए की क्या औकात!)
बचपन में
रुपया देकर चीज़ ख़रीदी
बाकी बची अठन्नी
आठ आना दे चीज़ ख़रीदी
बाकी बची चवन्नी
चार आना दे चीज़ ख़रीदी
बाकी बची दुअन्नी
दो आना दे चीज़ ख़रीदी
बाकी बची इकन्नी
एक आना दे चीज़ ख़रीदी
बाकी बचा अधन्ना
उसमें भी
कुछ चीज़ आ गई
ताक धिना धिन धिन्ना।
इतनी चीज़ें मिलीं कि भैया
ठाठ हो गए ठेठ
अकड़े-अकड़े घूमा करते
बने अधन्ना सेठ!
लेकिन मेरे मुन्ना!
ग़ायब हुआ अधन्ना
ग़ायब हुई इकन्नी
ग़ायब हुई दुअन्नी
ग़ायब हुई चवन्नी
ग़ायब हुई अठन्नी
बाकी बचा रुपैया
उसकी मेरे भैया
मरी हुई है नानी
साफ़ हवा भी
नहीं मिलेगी
और न ताज़ा पानी।
खाना पीना
करना हो तो
लेना होगा लोन,
एक रुपए में
कर सकते हो
केवल टेलीफोन!
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