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काका हाथरसी की हास्य कविताओं का रस हम आप तक हम पहुंचाते रहे हैं. और आज के इस ब्लॉग में हम आप तक लेकर आएं हैं प्रसिद्ध कवि काका हाथरसी की हास्य कविता “तोंद की माया”.
इस हास्य कविता के माध्यम से काका हथरसी ने उन सभी लोगों पर कटाक्ष किया है जो मोटापे का मजाक उड़ाते हैं. काका हाथरसी एक प्रसिद्ध हास्य कवि हैं जिनकी अधिकतर रचनाएं सामाजिक परिवेशों पर एक प्रहार होती हैं.
“तोंद की माया”- हास्य कविता
खान-पान की कृपा से, तोंद हो गई गोल,
रोगी खाते औषधि, लड्डू खाएं किलोल,
लड्डू खाएं किलोल, जपें खाने की माला,
ऊंची रिश्वत खाते, ऊंचे अफसर आला,
दादा टाइप छात्र, मास्टरों का सिर खाते,
लेखक की रायल्टी, चतुर पब्लिशर खाते…
हवा जेल की खा रहे, कातिल-डाकू-चोर,
कातिल-डाकू-चोर, ब्लैक खाएं भ्रष्टाजी,
बैंक-बौहरे-वणिक, ब्याज खाने में राजी,
दीन-दुखी-दुर्बल, बेचारे गम खाते हैं,
न्यायालय में बेईमान कसम खाते हैं…
चली बिलाई हज्ज को, नौ सौ चूहे खाय,
नौ सौ चूहे खाय, मार अपराधी खाएं,
पिटते-पिटते कोतवाल की हा-हा खाएं,
उत्पाती बच्चे, चच्चे के थप्पड़ खाते,
छेड़छाड़ में नकली मजनूं, चप्पल खाते…
राजीव जी के सामने, मंत्री चक्कर खायं,
मंत्री चक्कर खायं, टिकिट तिकड़म से लाएं,
एलेक्शन में हार जायं तो मुंह की खाएं,
जीजाजी खाते देखे साली की गाली,
पति के कान खा रही झगड़ालू घरवाली…
चुगली खाकर आ रहा चुगलखोर को स्वाद,
चुगलखोर को स्वाद, देंय साहब परमीशन,
कंट्रैक्टर से इंजीनियर जी खायं कमीशन,
अनुभवहीन व्यक्ति दर-दर की ठोकर खाते,
बच्चों की फटकारें, बूढ़े होकर खाते…
पाखंडी मेवा चरें, पंडित चाटें होंट,
पंडित चाटें होंट, वोट खाते हैं नेता,
खायं मुनाफा उच्च, निच्च राशन विक्रेता,
काकी मैके गई, रेल में खाकर धक्का,
कक्का स्वयं बनाकर खाते कच्चा-पक्का…
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