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कभी एक समय था जब लोगों को बिना अखबरा चाय पीना गवारा नहीं था. आज ऐसी ही लत इंटरनेट की पड़ी है. और इस इंटरनेट की आग में घी का किया है फेसबुक ने. जब से फेसबुक आया है समाज एका एक बाड़ा वर्ग इसके पीछे पागल प्रेमी हो गया. चाहे कुछ नया पहने या कोई पूराना दोस्त सब फेसबुक में शेयर की मानों आदत हो गई. हालांकि मैं भी इस बिमारी का हिस्सा हूं पर मुझे इससे कोई डर नहीं. आखिर फेसबुक बना ही इसीलिए है ताकि हाम अपने चेहरे को दुनिया के सामने ला सकें.
आज इंटरनेट पर सर्फ पर सर्फ करते करते मुझे एक ऐसी हास्य कविता मिली जिससे मैं खुद को जोड़ कार देखने लगा. पूरी हास्य कविता पःड़ने के बाद लगा कि यार ये तो मेरी ही लाइफस्टाइल है. तो चलिए आप भी पढ़िए इस हास्य कविता को और समझिए अपनी फेसबुक की बला को.
फेसबुक की बस इतनी सी कहानी: हास्य व्यंग्य
बुरी आदते जो भी है अभी से बदल डालो
मौका मिलते ही तुम फेसबुक खोल डालो
हर पल अपना स्थिति संदेश बदल डालो
मित्रो टिप्पणी मेरी दीवार पर लिख डालो…
सुबह हो शाम या फिर दिन हो या रात
करो अपनों से दिल की या फालतू बात
अपनी खतम हो तो करो दूसरों की बात
मित्रो देर सुबेर कर लेना मुझसे तुम बात….
लगे छींक, होवे बुखार या हो जाये प्यार
बस जल्दी से लिख डालो ताज़ा समाचार
खुसनसीब होगे तो लग जाएगी भीड़ अपार
बदनसीब होंगे तो मित्र आएंगे बस दो चार…
किसी समूह मे यदि न दे कोई आपको भाव
तब बात करो येसी कि बन जाये वो घाव
बनाओ अपना भी समूह खेलो तुम येसा दाँव
उद्देश्य न समझे कोई पर दे आपको केवल भाव…
महिलाओं को मिलता यहाँ भी है खूब सम्मान
चाटुकारिता अपनाओ और बढ़ाओ अपना मान
कुछ विवादास्पद कह कर बढ़ाओ अपनी शान
कदम फूँककर रखना ये फेसबुक है भाई-जान…
खूब मनाओ और भुनाओं तुम सारे अवसर
उड़ाओ मज़ाक किसी का या करो तिरस्कार
वैसे प्रोफाइल आपका, उसपर आपका अधिकार
कोई आहत न हो यहाँ, इसका करना विचार…
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