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जी, हां यह घर-घर की कहानी है कि पहली तारीख को तन्खवाह घर में आती है ना जानें कब आधा महीना होता होते वह खत्म हो जाती है. एक आम आदमी तो इस स्थिति का सामना हर महीने करता है. आज नौ तारीख और कई ऐसे बदनसीब भी होते हैं जिनकी तनख्वाह एक तारीख को मिलती है और आज के दिन खत्म हो जाती है जैसे हमारे प्यारे मस्तीराम.
उनकी हालत को देखते हुए हमने आज एक हास्य कविता ढूंढी और उन्हें इमेल पर भेजी. उन्हें तो बहुत पसंद आई यह हास्य कविता. चलिए आप भी पढ़िए इस हास्य कविता और सोचिए कि क्या आपके साथ भी ऐसा होता है क्या.
हास्य कविता
महीने की,
पहली तारीख को,
कितनी अच्छी,
लगती थी तुम,
मेरे हाथ में,
पूरी की पूरी !
गोया,
तुम और मैं,
बने है,
सिर्फ,
एक दूसरे के लिए,
पूरे के पूरे !
एक अनकहा वादा था,
साथ निभाने का,
पूरे महीने भर का !
मगर तुम,
ऐ नाज़नीन !
निकली बेवफा,
उस पूनम के चाँद की तरह,
जो होता चला गया,
कम,
रोज़ ब रोज़,
और गायब हो गयी तुम,
बीच महीने में,
पूरी तरह से,
मेरा साथ छोड़ कर,
चाँद की तरह !
अब मैं बैठा हूँ,
तन्हा !
खाली मलते हुए,
अपने हाथ,
और,
मेरे सामने बचा है,
काटने को,
आधा महीना,
पूरा का पूरा !
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