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अब तक हम कई बार आप लोगों के लिए हास्य कविताएं लेकर आतेरहे हैं लेकिन इस बार हम लेकर आएं है कुछ विशेष कविताएं. यह कविताएं दरअसल इस ठंड के मौसम में उन आशिकों के लिए हैं जिन्होंने अपनी माशुकाओं को खो दिया है.
जब भी दिल टूटता है तो उसकी आवाज जरूर आती है,. इसी आवाज से जो सुर बनता वह दिल में सीधे उतर जाता है. इसी तथ्य को मानते हुए यह एक कविता और गजल पेश है दिलजले आशिकों के लिए .
इश्क के गुलशन को गुल गुज़ार न कर!
इश्क के गुलशन को गुल गुज़ार न कर!
ऐ नादान इंसान कभी किसी से प्यार न कर!
बहुत धोखा देते हैं मोहब्बत में हुस्न वाले,
इन हसीनो पर भूल कर भी ऐतबार न कर!
दिल से आपका ख्याल जाता नहीं!
आपके सिवा कोई और याद आता नहीं!
हसरत है रोज़ आपको देखूं,
वरना आप बिन जिंदा रह पाता नहीं!
वे चले तो उन्हें घुमाने चल दिए!
उनसे मिलने-जुलने के बहाने चल दिए!
चाँद तारों ने छेड़ा तन्हाई में ऐसी राग,
वे रूठे नहीं की उन्हें मानाने चल दिए!
वो मिलते हैं पर दिल से नहीं!
वो बात करते हैं पर मन से नहीं!
कौन कहता है वो प्यार नहीं करते,
वो प्यार तो करते हैं पर हमसे नहीं!
नाबिक निराश हो तो साहिल ज़रूरी है!
ज़न्नत की तलाश में हो तो इशारा ज़रूरी है!
मरने को तो कोई कहीं मर सकता है,
लेकिन ज़ीने के लिए सहारा ज़रूरी है!
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Kavita, Sad Poem for Lovers
कैलैंडर की तरह महबूब बदलते क्युं हैं
झूठे वादों से ये दिल बहलते क्युं हैं ?
अपनी मरज़ी से हार जाते हैं जुए में सल्तनत,
फ़िर दुर्योध्नो के आगे हाथ मलते क्युं हैं ?
औरों के तोड डालते हैं अरमान भरे दिल,
तो फ़िर खुद के अरमान मचलते क्युं हैं ?
दम भरते हैं हवाओं का रुख मोड देने का ,
फ़क़्त पत्तों के लरज़ने से ही दहलते क्युं हैं ?
खोल लेते हैं बटन कुर्ते के, फ़िर पूछ्ते हैं,
न जाने आस्तीनों मे सांप पलते क्युं हैं ?
नन्हा था इस लिए मां से ही पूछा ,
अम्मा ! ये सूरज शाम को ढलते क्युं हैं ?
वो कहते हैं नाखूनो ने ज़खम “दीया”,
नाखूनों से ही ज़खम सहलते क्युं हैं ?
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