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HASYAKAVITA IN HINDI सपनों का पेड़: अशोक चक्रधर की हास्य कविता

Hasya Kavita
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मानव भी बड़ा अजीब होता है उसके लिए जिंदगी यूं तो भगवान की सबसे सुन्दर रचना होती है पर वह इस दुनिया में भी अनगिनत नुक्स निकालता है और वह खूबसूरत जिंदगी के लिए फिर सपने देखता है. एक आदमी के सपने भी बड़े अजीब होते है. अमीर और अमीर होना चाहता है तो गरीब सिर्फ दो जून की रोटी के लिए रोता है तो वहीं मोटा पतला होने के तो पतला हाड़ मांस के लिए सपनों की दुनिया सजाता है. सपनों की इसी दुनिया पर आधारित आज अशोक चक्रधर की हास्य कविता पढ़ने को मिली.


सपनों का पेड़ नाम की यह हास्यकविता बेहद रोचक और मनोरंजक है.


सपनों का पेड़ : हास्य कविता

दिल दिमाग़ में पड़ गया, इक सपने का बीज,

पेड़ उगा तो वहाँ थीं, तरह–तरह की चीज़।


एक शाख भिंडी लगी, दूजी पर अमरूद,

मोबाइल बंदर बने, वहाँ रहे थे कूद।


रिंग टोन हर फ़ोन की अलग सुनाई देय,

एक डाल डंडा पकड़, मुर्गा अंडा सेय।


मुर्गा गांधी बन गया, अंडा बन गया साँप,

फन को फैला देख कर, गांधी जी गए काँप।


एक शाख चौड़ी हुई, फैल गई अतिकाय,

सड़क बनी वह डाल फिर, बढ़त जाय बल खाय,

फ्रिज सोफा पहिये लगे, हुई भयंकर रेस,

चलते एक मकान से निकला सुंदर फेस।


तभी सामने से दिखे, बुलडोज़र के दाँत,

खून मकानों से बहा, बाहर निकलीं आँत।

दाँतों के आतंक ने, ऐसी मारी रेड़,

सपने के उस बीज में, लुप्त हो गया पेड़।

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