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इन दिनों जहां देखो वहीं शादियों का माहौल है. सड़क़ें और पार्क शादियों के लिए बुक हुए मानो पड़ते हैं. हालांकि शादी का लड्डु सबके लिए मिठा होता है या नहीं यह तो सब जानते हैं पर इस लड्डू को सभी खाने के लिए ललायित रहते हैं. कई लेखकों के तो शब्दों में रंग शादी के बाद ही आता है. अब हमारे तिवारी साहब को ले लीजिएं जो शादी के बाद हास्य कवि बन गए हैं. आइयें जानें आखिर कैसे बने हास्यकवि :
मैं बन गया हास्य कवि : हास्यकविता
मेरा हास्य कवि बनना एक हादसा था
बस में एक मैडम जी से पड़ गया वास्ता था
बात उन दिनों कि है जब मैं कवांरा
लोगों की नजर में मैं एक आवांरा था….
लेकिन मुझे तो लैला मजनू के प्यार की खोज थी
गलि से लेकर बस स्टैंड में रोज थी
ऐसे में एक दिन एक मैंडम जी मुझसे बस में टकरायीं
मेरे रोम- रोम में करेंट समायी…
और मन में विचार कौंधा कि
मेरा थोबड़ा उन्हें भा गया है क्या भाई
फिर मैंने उनपर थोड़ी सी और नजर गड़ायी
अबकी बार वे थोड़ी सी षरमायी…
लड़की हंसी तो पटीवाली बात मुझे याद आयी
फिर मोबाइल पर वे कुछ अंग्रेजी में गिटपिटाईं
जो बात मेरे भेजे में नहीं समायी
फिर मुसटंडो की जमात आयी…
जी भर के उन सबों ने मेरी की पिटायी
और मुंह पर कालीख पोतकर
गदहा पर मेरी बारात निकलवायी
और गदहे को गदहा पर देखकर…
गदहों ने जी भर कर ताली बजायी
इस प्रकार मैं हास्य कवि बन गया मेरे भाई।
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