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कुर्सी किसी की नहीं: हास्यकविता

Hasya Kavita
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HASYA KAVITA

आजकल चारोंतरह राष्ट्रपति पद की कुर्सी के लिए जंग मची है. प्रणब दा ने सारी सेटिंग तो कर ली है लेकिन लगता है एनडीए आखिरी ओवर में कोई बड़ा बदलाव करने की व्यर्थ करने की कोशिश कर रही है. ममता जी ने मैच में बारिश की तरह खलल डालने का काम बहुत सही ढंग से किया और एपीजे अब्दुल कलाम ने फाइनल से पहले ही चोटिल होने का बहाना बनाकर खुद को मैच से अलग कर लिया. प्रणब दा अकेले मैदान में हैं लेकिन संगमा जी श्रीसंथ की तरह मैच में आने की पूरी कोशिश कर रहे है. इस मैच में धोनी की तरह पर्दे पर पीछे के कार्य कर रही है सुश्री सोनिया गांधी जी.


तो चलिए पढ़ते हैं एक हास्यकविता कुर्सी किसी की नही:

कुर्सी पर चाहे लिपिक लिखा हो
या महाप्रबंधक
बस वह मिलना चाहिए।

अपने घर में जिस पर स्वयं बैठ सकें

वह लकड़ी की हो या लोहे की

कौन देखने आता है

कुर्सी का रुतबा तो बाहर ही

नजर आता है

न मिले तो बस नाम के आगे ही

तख्ती की तरह लग जाये

हम न बैठ सके तो कोई बात नहीं

नाम ही कुर्सी पर बैठा नजर आना चाहिए।।



…………………………..
कुर्सी बिन सून
जिसके पास नहीं है
लगता है उसका हो जैसे सफेद खून



………………..
चेले ने कहा गुरु से
‘बहुत दिन हो गये सेवा के नाम पर
आपकी चाकरी करते हुए
नहीं घुसा दिमाग में ब्रह्मज्ञान
दुनियांदारी खूब करवा ली
अब आप जाओ वानप्रस्थ
मत करो अब मुझे अधिक त्रस्त
अपनी कुर्सी अब मुझे दे दो
मेरे बैठने से परहेज है तो
अपनी पादुकायें वहां रखने के लिये दे दो
मेरे नाम के आगे गुरु की उपाधि
अब चिपकना चाहिए
इससे आपका भी बढ़ेगा मान।




………………………
कुर्सी किसी की सगी नहीं

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