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Raksha Bandhan Special Hasyakavita: कच्चे धागों का बंधन?

Hasya Kavita
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आज की हास्यकविता मात्र हंसने के लिए नहीं ब्लकि कुछ सोचने के लिए है. यह कविता रक्षाबंधन के उलक्ष्य में है. यह हास्यकविता आज के सभी युवाओं को इंगित करती है जो हर लड़की को एक भावी गर्लफ्रेंड के रूप में देखते हैं. ऐसे ही लडको को ध्यान में रखते हुए एक कविता ग्वालियर वाले “भरतदीप” की है जो एक बेहतरीन हास्यकवि हैं. उम्मीद है आपको कविता पसंद आएगी.


कुछ ही दिनों में रक्षाबंधन है. एक ऐसा दिन जब भाई अपनी बहन की रक्षा का प्रण लेता है लेकिन अक्सर वही भाई किसी और की बहन को प्रेमिका बनाता है. अजीबो-गरीब खेल पर एक विशेष हास्यकविता.


Hasya kavita हास्यकविता रक्षाबंधन की कहानी पर

उसने घर में घुसते ही
अपने चारों मोबाइल का स्विच आफ कर
अल्मारी में रख दिये

फिर अपनी टांगें सोफे पर फैलाई

पास ही बैठा देख रहा था छोटा भाई


उसने बड़े भाई से पूछा
‘यह क्या किया
जान से प्यारे
मोबाइलों का स्विच आफ किया
सभी को अल्मारी की कैद में डाल दिया
अब वह चारों जानूं जानूं कहकर
किसे पुकारेंगी


बैठे तुम्हारे नंबरों को निहारेंगी
क्या उन सबसे बोर हो गये हो
यह इश्क से परेशान घोर हो गये हो
या कोई पांचवीं पर दिल आ गया है
तुम मोबाइल भी साथ रखकर सोते हो
उसकी घंटी और तुम्हारी आवाजें सुनकर
तो लगता नहीं कि कभी नींद तुम्हें आई
ऐसा क्या हो गया
कहीं तुमने इश्क से सन्यास की कसम तो नहीं खाई’


Hasya Kavitaबड़ा भाई बोला
‘आज तो था आजादी की दिन
खूब जमकर बनाया

मैं तो निकला था घर से खरीदने का किराना

वह भी चारों अलग अलग आई


कोई निकली थी कालिज में फंक्शन का
कोई सहेली के साथ पिकनिक का

कोई निकली थी स्पेशल क्लास का बनाकर बहाना

लक्ष्य एक ही था इश्क करते हुए



मोटर सायकिल पर घूमते हुए
इस बरसात में नहाना

सभी के परिवार वाले घर में बंद थे

अपने कामों के पाबंद थे

इसलिये कहीं किसी का डर नहीं था

सचमुच हमने आजादी मनाई



पर कमबख्त यह राखी भी कल आई
भाईयों को राखी बांधकर वह

फिर मोबाइल पर देंगी आवाज

हो जायेगा में मेरे लिये मुसीबत का आगाज

फिर तो मुझे जाना पड़ेगा

नहीं तो पछताना पड़ेगा



कल अगर गया तो फिर
आज जैसे ही घुमाना पड़ेगा



मेरे दोस्त भी बहुत है
किसी कि बहिन है इधर

तो किसी की उधर

सभी कल चहलकदमी सड़कों पर करेंगे

मेरे साथ किसी को देख लिया तो

माशुका की जगह बहिन समझेंगे


चारों में से किसी के साथ तो
परमानेंट टांका भिड़ेगा

पर बाद में दोस्तों की फब्तियों से

कौन घिरेगा



आज तो सभी की आंख
वैसे ही पवित्र देखने लग जाती हैं

अक्ल माशुका को भी बहिन समझ पाती है

ऐसे में अच्छा है बाद के लफड़ों से

एक दिन के लिये इश्क से दूर हो जाऊं


क्यों मैं किसी के भाई की उपाधि पाऊं
किसी को जिंदगी का हमसफर तो बनाना है

भला कहां हमें कच्चे धागों का बंधन निभाना है

इसलिये मैंने राखी के दिन को ही

पूर्ण आजादी की तरह मनाने की अक्ल पाई


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