Menu
blogid : 4683 postid : 465

मीडिया से संबंधित एक हास्यकविता

Hasya Kavita
Hasya Kavita
  • 272 Posts
  • 172 Comments

यह हास्यकविता आजकल फेसबुक पर बहुत ज्यादा शेयर की जा रही है और आजकल की मीडिया पर बेहद सटीक भी है. आज मीडिया असम की हिंसा को तो दिखाता है पर मुबंई और पुणे की मुस्लिम की हरकतों पर पर्दे डालते हैं. ऐसे ही भ्रष्ट मीडिया के खिलाफ एक कविता

मीडिया: हास्यकविता

हमने,

बचपन से ही सुना है

“पहले तोलो, फिर बोलो”

महात्मा गांधीजी के

एक बंदर ने सिखाया था

“कम बोलो, ज़रूरी हो तो बोलो

अगर एक शब्द से काम चलता हो तो

दो शब्द भी मत बोलो”

स्कूल में मुहावरा पढ़ा था

“दीवारों के भी कान होते हैं”

आज,

एक अनमोल वचन सुना

“मत बोलो,

दुश्मनों के भी कान होते हैं”

बात तो सही है

पर,

आम लोग तो कम बोलें या ज़्यादा

कोई फर्क नहीं पड़ता है’

लेकिन,

इन मीडिया वालों का क्या करें?

जो,

अपनी

टी.आर.पी बढ़ाने

और

सबसे पहले ख़बर भुनाने की

होड़ में

ज़रा-सी बात की

भनक पड़ते ही

ख़बर उछालने

और

बात का बतंगड़ बनाने की ललक में

कुरेद-कुरेदकर

ख़बर बनाते हैं

चिल्ला-चिल्लाकर

राज़ बताते हैं

हंगामाख़ेज़ शीर्षकों से

अंदर की ख़बर सुनाते हैं

वे तो यह बात भूल ही जाते हैं न

कि

“दुश्मनों के भी कान होते हैं”

बस,

दुश्मन

उसीका लाभ उठाते हैं

भारी हंगामा मचाते हैं

भयंकर आतंक मचाते हैं

लाशों के ढेर बिछाते हैं

चुपके-से खिसक जाते हैं

पकड़े जाने पर

जेलों में मनचाही बातें मनवाते हैं

और

फिर

दया और सहानुभूति की अपील के ज़रिए

अक्सर छूट जाते हैं

फिर भी मीडिया वाले

यह भूल जाते हैं

कि

दुश्मनों के भी कान होते हैं,

दुश्मनों के भी कान होते हैं,

दुश्मनों के भी कान होते हैं.’

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply to jlsinghCancel reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh