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कल विश्व गरीबी उन्मूलन दिवस था, अंग्रेजी में कहूं तो International Day for the Eradication of Poverty,एक दिन गरीबी को हटाने के नाम. क्या बात है ना. लेकिन सोच कर देखिए भारत की सरकार गरीबी खत्म कर रही है या गरीबो को. हाल ही में एक गधों की समिति ने कहा था कि 32 रुपए कमाने वाला गरीब नहीं है. अब बताइएं भला कि क्या यह 1000 रुप प्रति प्लेट खाना एक समय में खाने वाले क्या 32 रुपए में अपना एक दिन चला सकते हैं? जो आहुलिवालिया जी इस समिति के अध्यक्ष थे उन्हें लोगों ने बाद में 32-32 रु के बहुत से चेक भी भेजे और कहा कि जरा एक दिन इस पैसे से काट कर दिखा.
सरकार की निक्कमी नितियों और ऐसी रिपोर्टों के खिलाफ एक हास्य कवि की यह हास्यकविता बडी ही शानदार फिट बैटती है.
गरीबी के गुब्बारे पर होगी अब सवारी,
नज़र मे है गरीब किसान,मजदूर और भिखारी।
अभी 3 रू किलो चावल,5 रू का दाल भात,
किसानों को मुफ्त बिज़ली,ऋण माफी की दे सौगात।
कर रहे हैं अतिक्रमण,देश भ्रमण,वोट हमारा है,
भ्रष्टाचार,भ्रष्ट सरकार,यही मज़बुत सहारा है।
सिखलाते हैं “साहब” तुमको एक महामंत्र,
काम बनायेँ आपना बऱकरार लोकतंत्र।
जिसकी लाठी उसकी भैंस,वर्चश्व न छुटे,
साँप भी मर जाय,अपनी लाठी कभी न टूटे।
आयेगें फिर से माँगने हम तुम्हारे वोट,
छीना है जो पाँच साल तक देगें इक दिन नोट।
गाँव गाँव और शहर शहर मे पुँछ परख़ है जारी,
गरीबी की रेखा मे सामंतों की लिस्ट है भारी।
गरीबी हटायेंगें “साहब” लगा रहें हैं नारा,
गरीबों को ही हटा देगें खेल खतम है सारा।
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