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हास्यकविता:कोई प्राइवेट तो कोई सरकारी [Hasya Kavita in Hindi]

Hasya Kavita
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Hasya Kavita in Hindi

कल लोगों ने रावण दहन किया. जगह जगह मेले लगे सभी ने दशहरे पर्व का पूरा आनंद लिया. लेकिन क्या एक सवाल किसी के मन में आया कि यह रावण आखिर हर साल जलता है पर मरता क्यूं नहीं. दोस्तों रावण चाहे कितना भी दुष्ट था लेकिन उसे पता था कि राम जी उसका भला कर ही देंगे सो जनाब ने मरते हुए राम का नाम लिया और राम जी का दिल तो मोम की तरह है उस दुष्ट को भी अपन भक्त मान बना दिया जनाब को सदा-सदा के लिए अमर.



खैर रावण अच्छा था या बुरा इसपर डिस्कश्न बंद करते हैं और आते हैं ,सीधे हास्यकविता पर. आज की यह हास्य कविता बेहद शानदार है क्यूंकि यह एक् भोजपुरी हास्यकविता है. फेसबुक के भोजपुरी गायकों के पेज से ली गई यह हास्य कविता आदमी की चेहरा बदलने की नियत पर प्रकाश डालती है.



चेहरा पर चेहरा लागल बा

आदमी के पहचान

केहू प्राईवेट , त केहू सरकारी बा,

केहू मजदुर , त केहू कर्मचारी बा,

केहू नौकर, त केहू अधिकारी बा,

केहू किसान, त केहू व्यापारी बा,


सबके आपन आपन पहिचान बा,

सबके सीमा के अलग अलग निसान बा.


केहू मंदीर के घंटा बजा के, ब्रम्हा के औलाद बनत बा,

केहू चर्च के मोमबत्ती जला के, ईशा के फौलाद बनत बा,

केहू मस्जीद में अजान पढ़ के, अल्लाह के मुराद बनत बा.



आदमी के एह पहचान में इंसान कहाँ बा?

चेहरा पर लागल चेहरा के पहचान कहाँ बा?


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