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आज के हास्य कविता के ब्लॉग में मैं ना सिर्फ हास्य कविता पोस्ट कर रहा हूं बल्कि यह एक तरह के हास्य दोहे भी हैं. हास्य कविताकविता की तरह ही हमारे दिल में बसती है और हमारे मन को शांति देती हैं तो आप भी मजा लीजिएं इस शानदार हास्य कविता का.
जहाँ न सोचा था कभी, वहीं दिया दिल खोय
ज्यों मंदिर के द्वार से, जूता चोरी होय
सिक्के यूँ मत फेंकिए, प्रभु पर हे जजमान
सौ का नोट चढ़ाइए, तब होगा कल्यान
फल, गुड़, मेवा, दूध, घी, गए गटक भगवान
फौरन पत्थर हो गए, माँगा जब वरदान
ताजी रोटी सी लगी, हलवाहे को नार
मक्खन जैसी छोकरी, बोला राजकुमार
संविधान शिव सा हुआ, दे देकर वरदान
राह मोहिनी की तकें, हम किस्से सच मान
जो समाज को श्राप है, गोरी को वरदान
ज्यादा अंग गरीब हैं, थोड़े से धनवान
बेटा बोला बाप से, फर्ज करो निज पूर्ण
सब धन मेरे नाम कर, खाओ कायम चूर्ण
ठंढा बिल्कुल व्यर्थ है, जैसे ठंढा सूप
जुबाँ जले उबला पिए, ऐसा तेरा रूप
-रचानाकार धर्मेन्द्र कुमार सिंह
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