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सबको चाहिए लुगाई: हास्यकविता [Hasyakavita for Lovers]

Hasya Kavita
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पिछले कई हास्यकविताएं मैंने शादी पर चेंपी हैं और इसी क्रम को और भी आगे बढ़ाते हुए हाजिर हैं एक और प्यारी सी हास्यकविता.. यौवन रथ.. हास्य कवि है प्रदीप जी. और हास्य कविता है हिन्दी में.



मजदूर व्यापारी कामगार

शिक्षित हो या बेरोजगार

होता क्रेज कब हो सगाई

ब्याह रचे घर आये लुगाई

यौवन रथ खड़ा था द्वार

मुझे हो गया उनसे प्यार

पहले तो घर वाले भन्नाए

लव मैरिज के गुण दोष बताये

मिलता न कुछ घर से जाता

बैरी घर समाज टूटे हर नाता

पहला ब्याह मेरा है बापू

चलते बरात या रास्ता नापूं

लड़की हो लड़का करते मजबूर

आशिकी करती अपनों से दूर

लोक लाज न शर्म से नाता

प्रेम रोग में केवल प्रेमी भाता

चुप कोने मै बैठी उठ बोली माई

अरेन्ज मैरिज कर या बन घर जमाई

करना है जो मैया जल्दी करना

प्यार किया है अब क्या डरना

जल्दी से उसे अपनीबहू बना

आरोप न लगे कैसा पुत्र जना

माने लोग तब निकली लगन

सजनी मिलन जान जियरा मगन

आये पाहुन ले सज गद्दा रजाई

सजनी द्वार पहुंचा बरात सजाई

बरात की बात थी बेरात हो गई

तारों की छाँव में विदाई हो गई

रोते हुए परिजनों से खूब लिपटी

अचानक तेजी से बस ओर झपटी

रुदन बंद देख पूंछा इतनी जल्दी ब्रेक

तपाक से वो बोली आदमी हो या क्रेक

अपनी सीमा तक मैं रोयी अब ये हुई परायी

‘प्रदीप कुशावाहा’


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