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आज सुबह-सुबह उठा तो बड़ी तेज भूख लगी थी. मन में विचार उठा कि रात भर तो मैं चद्दर तान कर सोया हूं फिर यह भूख क्यूं? तभी दिमाग के किसी कोने से आवाज आई अरे भाई रात में सपनों में प्रेमिका के साथ एक किस के लिए गार्डन के चालिस चक्कर लगाए थे भूल गए क्या उसे? फिर क्या था आ गया सारा माजरा समझ में.
लेकिन यह दिमाग है ना जो किसी की नहीं सुनता ना मानता है. “पेट” … यह पेट ना होता तो दुनिया के आधे से ज्यादा जुर्म ही ना होते लेकिन इस पेट की वजह से ही दुनिय के बहुत से जुर्म हो रहे हैं. तो चलिए आज पढते हैं एक हास्यकविता पेट से संबंधित. और हां मुझे लेखक गण के बारें में पता नहीं है इसलिए जिस किसी महाशय की यह कवविता हो वह मेरा आभार ले.
HINDI HASYA KAVITA
एक दिन मैंने पेट से पूछा-
”क्यों रे कमबख्त!
इतना क्यों पीठ से चिपकता जा रहा है?”
वह बोला-
”मालूम नहीं आपको,
आजकल समाजवाद आ रहा है।
अब बड़ा और छोटा
खरा और खोटा
सब एक हैं,
समाजवाद का यही तो है मंतर
फिर पेट और पीठ में
कैसा अंतर?”
मैं बोला-
”लगता है अब तू
जल्द ही बड़ा होने वाला है,
अगले चुनाव में शायद
तू भी खड़ा होने वाला है।”
वह बोला-
”खड़े होने के लिए भरा होना ज़रूरी है
और मैं तो बिल्कुल खाली पेट हूँ
यानि कि इंडिया गेट हूँ।
बस, समाजवाद लाना चाहता हूँ।”
मैं फिर बोला- ”समाजवाद के लीडर जैसी
तेरी केवल बातें हैं
तू पीठ से चिपक नहीं सकता
क्योंकि तेरे और पीठ के बीच
अब भी कुछ आँतें हैं।”
हँसकर बोला पेट-
”पूरे अड़तालीस दिन हो गए
मुझे सूखी रोटी का एक टुकड़ा
या किसी कुत्तों के मुँह से गिरा
बोटी का एक टुकड़ा
कुछ भी तो नहीं मिला।
ऐसे में देश का नक्शा ही
देश की सीमा छोड़ देगा
ये भूखा पेट, देख लेना
सारे नियम तोड़ देगा।
कल तक रोटी नहीं मिली
तो मैं अपनी इन
आँतों को ही खा जाऊंगा,
पीठ से चिपक जाऊंगा
हर हाल में समाजवाद लाऊंगा।”
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