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हिन्दीहास्यकविताओं का संसार बहुत बड़ा है और इसमें समाज में समाहित सभी रंगों का समावेश है. अब आप आज मेरे द्वारा प्रेषित हास्य कविता को ही ले लीजिएं. यह हास्य कविता कलयुग में जन्में कुछ ऐसे बच्चों के बारें में है जो अपने माता-पिता की इज्जत नहीं करते.
आइएं पढ़े इस शानदार हास्य कविता को
माँ की दवाई का खर्चा, उसे
मज़बूरी लगता है
उसे सिगरेट का धुंआ,
जरुरी लगता है ||
फिजूल में रबड़ता , दोस्तों के
साथ
इधर-उधर
बगल के कमरे में, माँ से मिलना ,
मीलों की दुरी लगता है ||
वो घंटों लगा रहता है, फेसबुक
पे
अजनबियों से बतियाने में
अब माँ का हाल जानना, उसे
चोरी लगता है ||
खून की कमी से रोज मरती,
बेबस
लाचार माँ
वो दोस्तों के लिए, शराब
की बोतल,
पूरी रखता है ||
वो बड़ी कार में घूमता है , लोग
उसे
रहीस कहते है
पर बड़े मकान में , माँ के लिए
जगह
थोड़ी रखता है ||
माँ के चरण देखे , एक
अरसा बीता उसका …
अब उसे बीवी का दर,
श्रद्धा सबुरी लगता है ||
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