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हाल ही मेरे एक मित्र मुझसे कई दिनों बाद मिलने आएं. आते ही मुझे अपने ससुर के बारें में बताने लगे. उनकी बातों से यह बात सामने आई कि उनके ससुर जी थोड़े कडक दिमाग के हैं तो हमें उनकी स्थिति पर हास्य कवि अशोक चक्रधर की एक कविता याद आ गई जो कुछ इस तरह से है.
हास्य कविता: अशोक चक्रधर
डरते झिझकते
सहमते सकुचाते
हम अपने होने वाले
ससुर जी के पास आए,
बहुत कुछ कहना चाहते थे
पर कुछ
बोल ही नहीं पाए।
वे धीरज बँधाते हुए बोले-
बोलो!
अरे, मुँह तो खोलो।
हमने कहा-
जी. . . जी
जी ऐसा है
वे बोले-
कैसा है?
हमने कहा-
जी. . .जी ह़म
हम आपकी लड़की का
हाथ माँगने आए हैं।
वे बोले
अच्छा!
हाथ माँगने आए हैं!
मुझे उम्मीद नहीं थी
कि तू ऐसा कहेगा,
अरे मूरख!
माँगना ही था
तो पूरी लड़की माँगता
सिर्फ़ हाथ का क्या करेगा?
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