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अंधा और लूला व्यंग्य (Hasya kavita in Hindi)

Hasya Kavita
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व्यंग्य की दुनियां भी बहुत अजीब होती है. अपने मन की सारी भड़ास निकाल लो और वो भी कुछ इस अंदाज में कि ना त्गो सुनने वाले को बुरा लगे और ना ही जिसपर व्यंग्य किया जा रहा है उसे ही समझ में आए कि वास्तविक निशाना कौन है. भ्रष्टाचार, महंगाई और बेरोजगरी आज के भारत की कुछ बहुत बड़ी समस्या है. ऐसी समस्या जिनपर गंभीर होकर तो कुछ मिला नहीं तो देखते है व्यंग्य के माध्यम से क्या हासिल झो जाएगा. पेश-ए-खिदमत है व्यंग्य के महान फनकार शैल चतुर्वेदी की बेरोजगारी पर केन्द्रित यह छोटी सी रचना

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा

और कहा, “एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?”

तो बोला, “पहले खाना खिलाओ।”

खाना खिलाया तो बोला, “पान खिलाओ।”

पान खिलाया तो बोला, “खाना बहुत बढ़िया था

उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।

अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं

हमें व्यंग्य मत सुनाओ

जो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहा

और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर

कुर्सी को कैश करता रहा।

व्यंग्य उस अफ़सर को सुनाओ

जो हिन्दी के प्रचार की डफली बजाता रहा

और अपनी औलाद को अंग्रेज़ी का पाठ पढ़ाता रहा।

व्यंग्य उस सिपाही को सुनाओ

जो भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मानता रहा

और झूठी गवाही को पुलिस का संस्कार मानता रहा।

व्यंग्य उस डॉक्टर को सुनाओ

जो पचास रूपये फ़ीस के लेकर

मलेरिया को टी०बी० बतलाता रहा

और नर्स को अपनी बीबी बतलाता रहा।

व्यंग्य उस फ़िल्मकार को सुनाओ

जो फ़िल्म में से इल्म घटाता रहा

और संस्कृति के कपड़े उतार कर सेंसर को पटाता रहा।

व्यंग्य उस सास को सुनाओ

जिसने बेटी जैसी बहू को ज्वाला का उपहार दिया

और व्यंग्य उस वासना के कीड़े को सुनाओ

जिसने अपनी भूख मिटाने के लिए

नारी को बाज़ार दिया।

व्यंग्य उस श्रोता को सुनाओ

जो गीत की हर पंक्ति पर बोर-बोर करता रहा

और बकवास को बढ़ावा देने के लिए

वंस मोर करता रहा।

व्यंग्य उस व्यंग्यकार को सुनाओ

जो अर्थ को अनर्थ में बदलने के लिए

वज़नदार लिफ़ाफ़े की मांग करता रहा

और अपना उल्लू सीधा करने के लिए

व्यंग्य को विकलांग करता रहा।

और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा, लूला और लंगड़ा हो

तीर नहीं बन सकता

आज का व्यंग्यकार भले ही “शैल चतुर्वेदी” हो जाए

‘कबीर’ नहीं बन सकता।

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