Hasya Kavita
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महंगाई को सस्ता समझ लिया,
विकास का उसे बस्ता समझ लिया,
अक्ल लेकर उधार की
चला रहे है भलाई करने की दुकान,
अपने घर आ रही दौलत का
बस, केवल एक रस्ता समझ लिया।
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जिनके पेट भरे हैं पकवानों से,
सजी हैं घर की महफिलें धनवानों से,
वह महंगाई से टूट रहे
लोगों का क्या दर्द समझेंगे।
बाज़ार से खरीदकर हथियार
करते हैं अल्मारी में बंद
वह पहरेदार
हिफाजत के लिये क्या लड़ेंगे।
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जुबां से निकल रहे गरजते हुए बयान,
दिल में है बस,
अपनी दौलत, शौहरत और ताकत का ध्यान,
अपनी वातानुकूलित कारों का आराम छोड़कर
आम इंसान की तकलीफ का सच समझने के लिए
उबड़ खाबड़ सड़कों पर क्या पांव धरेंगे।
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