Hasya Kavita
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हम दौड़ें तो गिर-गिर जाएँ
दौड़े ट्रेन न गिरती है ।
पतली-पतली पटरी पे
छुक-छुक करके चलती है ।।
सनसन चाल निराली इसकी
हवा से बातें करती है ।
दिन हो या सावन की रात
ये तो चलती रहती है ।।
सर्दी, गर्मी, वर्षा, आंधी
हम सबके हित सहती है ।
पापा को घर से ले जाये
वापस भी ले आती है ।।
सैर कराए हमें घुमाये
लेकिन कभी न थकती है ।
गाँव नदी गिर शहर दिखाए
जंगल में न डरती है ।।
जहाँ हो चढ़ना हमें उतरना
आकर वहाँ ये रूकती है ।
जब-जब बोले तेजी से
डर हमको तब लगती है ।।
जो भी जाये उसे घुमाये
सबकी सेवा करती है ।
मेरे जैसे सेवा सीखो
हम सबसे भी कहती है ।।
देखो ! देखो ! वह देखो !
प्यारी ट्रेन गुजरती है ।
एक खराबी इसमें केवल
काला धुआँ उगलती है ।।
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